किसान
विधा : वर्ण पिरामिड
वो
देख
किसान
श्रम से ही
बोता है बीज
तो जाकर कहीं
कई दिनों में
पकती है
फसल
खेत
में ।
वो
जब
नित ही
अथक हो
उद्यम करे
हो श्रम सफल
आये सुखद क्षण
खिल उठती है
सरसों भी तो
अवश्य ही
बंजर
रेत
में।
वो
ही तो
है सबका
अन्नदाता जो
मेहनत करता
सर्दी, गर्मी, वरषा
तब जाकर तो
होता सबका
पालन भी
उसके
श्रम
से।
हां
सदा
निश्चित
सफलता
देता है श्रम
मीठा फल भी है
मिलता सदा
उद्यम से
विश्वास
कर
ले।
– नवीन जोशी ‘नवल’