किसान
किसान
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देख कृषक की लाचारगी, मौन रहे सरकार
धरे मौन सब भले, न हो हार स्वीकार
कानून कैसे लदे है , भूमि पुत्र पर आज
उगता सोना खेत में , करते जिस पर नाज
झेल विकट लाचारगी, आत्मघात मजबूर
बिगुल क्रांति का बजे वह, दिवस नहीं है दूर
बैठे अनशन खूब पर , नहीं हो समाधान
उतर विधाता देख तू , और रखे सम्मान
तोड़ फोड़ को मचाना , नाहीं अच्छे काज
उपाय ऐसा चाहिए,कृषक मनांगन बजेसाज
सुबह शाम रत रहे श्रम , करे तन्त्र सुविचार
ऐसा कानून नहीं हो , करे देह पर वार
रास्ता मध्यम चाहिए , मध्यम हो कानून
सींचे अपने स्वेद से , नहीं बहे पर खून