“किसान”
तन पर फटे हुए कपड़े हों
दिल में जगह बराबर हो
अंधकार का साया घर में
दिल में रोज दिवाकर हो
वो शख्स यहां से सूरज का
पग पग सदा मुसाफिर हो
हो राह पसीने से तर तर
पर दिल में रोज दिवाकर हो
हो अन्न उगाने की चाहत
और दर्द की झोली हाजिर हो
वो रहा जमीं पर हल कांधे पर
दिल में रोज दिवाकर हो
सोचो गर ना वो होता
ये देश कहाँ पर हो पाता
वो खुद का जीवन हमको यूं
हंस हंस पल पल दे जाता
हैं नजरें तीखी सूरज सी
पर दिल में जगह बराबर हो
अंधकार का साया घर में
दिल में रोज दिवाकर हो
………..भंडारी लोकेश