किसान हूँ मैं
किसान हूँ मैं
गर्मी में ठिठुरते, सर्दी में तपते, बरसात में सूखते हौसलो का अंजाम हूँ मै,
छोटा ही सही मग़र किसान हूँ मैं।
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तोड़कर सीना पत्थर का, जमीन को बनाता अन्न की खान हूँ मैं,
छोटा ही सही मग़र किसान हूँ मैं।
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हौसले मेरे पस्त नही होंगे कभी,इसीलिए आसमान में बोता धान हूँ मैं,
छोटा ही सही मग़र किसान हूँ मैं।
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हुक़ूमत तो क्या, झुका दिया पूरी कायनात को,
फिर भी अपनी ताकत से अनजान हूँ मैं,
छोटा ही सही मग़र किसान हूँ मैं।
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सहता हूँ सब ये सोच कर कि मुझसे वज़ूद है देश का,
वरना आपके जैसे ही हाड़ और माँस का बना इंसान हूँ मैं,
छोटा ही सही मग़र किसान हूँ मैं।
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पिसता हूँ हर बार सियासत की चक्की में, सियासत ही नहीं मौसम की मार से भी परेशान हूँ मैं,
छोटा ही सही मग़र किसान हूँ मैं।
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ओला, पाला, सूखा, बाढ़ ने जब किया बर्बाद, ऊपर से नोटिस बैंक का पाकर,
लेता खुद की ही जान हूँ मैं,
छोटा ही सही मग़र किसान हूँ मैं।
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उजड़ जाएंगे ख़्वाब सब मेरे, पूंजीवाद की आंधी में, नौकर बन जाऊंगा अपने ही खेत में,
सोच कर ये हैरान हूं मैं,
छोटा ही सही मग़र किसान हूँ मैं।
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अपनी व्यथा किसे सुनाऊं, अपना दुखड़ा किसे दिखाऊँ,
रखकर भूखा अपने पेट को, सींचता देश की संतान हूँ मैं।
छोटा ही सही मग़र किसान हूँ मैं।
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जिंदा लाश अब नही बनूँगा,
हक़ अपने अब लेके रहूंगा,
उतर कर अब सड़क पर बचा रह देश का संविधान हूँ मैं।
छोटा ही सही मग़र किसान हूँ मैं।
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?️संघप्रिय गौतम™