किसान मजदूर होते जा रहे हैं।
किसान मजदूर होते जा रहे हैं।
रातों जागते,स्वेद बहाते,
स्वप्न अच्छे दिनों के सजाते,
हर विपदा से लोहा मनवाते,
रुखी सुखी ही खा रहे हैं!
किसान मजदूर होते जा रहे हैं!!
धरा चीर परिश्रम उगाया,
हर सत्ता ने ठुकराया,
बादलों ने भी तरसाया,
फिर भी देखो मुस्कुरा रहे हैं!
किसान मजदूर होते जा रहे हैं!!
सोचते अब तो अच्छा होगा,
मकान अपना भी पक्का होगा,
स्वयं का चाहे भूखा बच्चा होगा,
सम्पूर्ण देश को खिला रहे हैं!
किसान मजदूर होते जा रहे हैं!!
हाय! धंसी कपोल,झुर्रि ले चेहरा।
हाय!पुस रात की खेत में पहरा।
आहा! धरा से रिश्ता कितना गहरा।
भार कंधे सारा उठा रहे हैं!
किसान मजदूर होते जा रहे हैं!!
रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’
खरसंडी, हनुमानगढ़