किसान की भी तो कोई बात सुनो
मर्ज़ी से मिलता उन को भाव नहीं,
किसान की ज़िंदगी गुलज़ार नहीं ।।
किसान की भी तो कोई बात सुनो,
कैसे हो गए हैं उन के हालात सुनो ।।
गर खेतों में वो जो कुछ न उगाएँगे,
सोचो फिर हम कैसे पेट भर पाएँगे ।।
अफ़्सोस उन की किस को पड़ी है,
सभी को अज़ीज़ अपनी ज़िंदगी है ।।
सुनो-सुनो सब इक बात सुनानी है,
किसान की अब आवाज़ उठानी है ।।
अब बर्दाश्त की हद पार हो रही है,
कि अंधी-बहरी सरकार हो रही है ।।
~#हनीफ़_शिकोहाबादी