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9 Oct 2019 · 1 min read

किसान का दर्द

किसान का दर्द
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हल चलाते किसान , परिश्रम खूब करते हैं,
लेकिन सेठ साहूकार अपनी तिजोरी भरते है ।
कितनी भी मुसीबत हो, किसान धैर्य धरते है,
कौन समझे किसान का दर्द,वे कितने तड़पते हैं।

स्वयं भूखा रहकर ,औरों को भोजन कराते है,
परिवार का पालन करते,बच्चों को पढ़ाते है।
धूप हो या वर्षा हो, परिश्रम निरंतर करते हैं,
कौन समझे किसान का दर्द ,वे कितने तड़पते हैं।

बेटी की ब्याह रचाने को,जमीन भी गिरवी रखते है,
टूट पड़ती दुख उन पर ,वे छुपकर सिसकते है।
समाज में मान बचाने को, सारे यत्न ओ करते है,
कौन समझे किसान का दर्द ,वे कितने तड़पते हैं।

सूखे की मार पड़े तो,दाने को मोहताज हो जाते है।
गरीबी की ये जिंदगी को,कैसे कैसे बिताते हैं।
महंगाई के इस दुनिया में ,कर्जदार ही रहते हैं,
कौन समझे किसान का दर्द ,वे कितने तड़पते हैं।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
पिपरभावना, बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822

Language: Hindi
2 Likes · 610 Views
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