किसान और धरती
बंजर धरती पर टिकी है ,
दो हसरत भरी निगाहें।
तो कभी आसमान की और ,
देखती उम्मीद भरी निगाहें।
की शायद कोई कतरा को,
बादलों से गिरने की मिल जाए राहें ।
बस कुछ बूंदें !
जिससे इस धरती की
प्यास मिट जाये,
“उस” तक पहुंच जाए
धरती की आहे ।
मगर अफसोस !
बादल आये भी ,
मगर नियति की हवा
उन्हें उड़ा ले गई ।
ना पूरी हुई धरती और
किसान की चाहें ।