किसानों की सुध अब कौन ले!
किसानों की सुध अब कौन ले!
#पण्डितपीकेतिवारी
समझ जाओगे किसान का दर्द,
एक बार खेतों में हल चलाकर तो देखो
किसी जमीन के टुकड़े में,
कभी अनाज उगाकर तो देखो ।
कभी जून की धूप में तो कभी दिसंबर की जाड़ में,
एक बार खेतों में जाकर तो देखो
भूखे प्यासे खेतों पर,
एक बार हल चलाकर तो देखो ।
कभी दोपहर के दो बजे तो कभी रात के तीन बजे,
एक बार सिंचाई के लिए मोटर चलाकर तो देखो
कंधों पर 15-15 लीटर की टंकियां लिए,
एक बार खेतों में स्प्रेयर चलाकर तो देखो ।
कभी मौसम की मार से,
तो कभी नकली बीज, खाद और दवाईयों के व्यापार से
कभी बीमारी, कीड़ों के वार से,
अपनी फसल लुटाकर तो देखो ।
समझ जाओगे किसानों का दर्द,
एक बार खेतों में हल चलाकर तो देखो ।
अगर यह सब कर भी लिया तो,
लागत से कम में फसल बिकवाकर तो देखो
कभी बाजार में मांग ना होने पर,
सड़कों पर अपनी फसल फिंकवाकर तो देखो ।
पापा ! मेरी गुड़िया कब लाओगे ?
बिलखती बच्ची को अगली फसल में लाने के झूठे सपने दिलाकर तो देखो
पूरी दुनिया को खाना खिलाकर,
अपने परिवार को भूखा रखवाकर तो देखो ।
नहीं मांगता खैरात में किसी से कुछ,
एक बार मेरे मेहनत का फल दिलाकर तो देखो
‘सोने की चिड़िया’ फिर से बन जायेगा भारत,
एक बार किसान को उसका हक़ दिलाकर तो देखो ।
कौन अब कहा किसान से बात करते है,यूं ही साथियों रोज हसीन सपनों की बात करते है ,ध्यान से देखिए आप हम सबका पेट भरने वाले अन्नदाता को आये दिन अपने अधिकारों और हक को हासिल करने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। लेकिन देश की सरकारे अपनी चतुर चाणक्य नीति से हर बार इन किसानों को आश्वासन देकर समझा-बुझाकर सबका पेट भरने के उद्देश्य से अन्न उगाने के लिए वापस खेतों में काम करने के लिए भेज देती है। देश में सरकार चाहें कोई भी हो, लेकिन अपने अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्षरत किसानों की झोली हमेशा खाली रह जाती है। आज अन्नदाता किसानों के हालात बेहद सोचनीय हैं, स्थिति यह हो गयी है कि एक बड़े काश्तकार को भी अपने परिवार के लालनपालन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, जो स्थिति देशहित में ठीक नहीं हैं, वही जो छोटे और दूसरे खेतों में काम करने वाले अन्नदाता है ,उनकी हालात क्या है यह किसी से छिपी नहीं है किसानों के इस हाल के लिए किसी भी एक राजनैतिक दल की सरकार को ज़िम्मेदार ठहराना उचित नहीं होगा। उनकी बदहाली के लिए पिछले 74 सालों में किसानों की वोट से देश में सत्ता सुख का आनंद लेने वाले सभी छोटे-बड़े राजनैतिक दल जिम्मेदार हैं। क्योंकि इन सभी की गलत नीतियों के चलते ही आज किसानों की स्थिति यह है कि भले-चंगे मजबूत किसानों को सरकार व सिस्टम ने कमजोर, मजबूर व बीमार बना दिया है। जिसमें रही सही कसर हाल के वर्षों में सत्ता पर आसीन रही राजनैतिक दलों की सरकारों ने पूरी कर दी है। जिनकी गलत नीतियों व हठधर्मी रवैये ने उन परेशान किसानों को सड़क पर आने के लिए मजबूर कर दिया है।अन्नदाता किसान जहां अब वो कृषि क्षेत्र की लाइलाज हो चुकी बिमारियों के समाधान की उम्मीद में बैठे है। किसानों में बढ़ते आक्रोश के चलते अब देश में स्थिति यह हो गयी है कि किसानों को आए दिन अपनी लंबे समय से लंबित मांगों के समाधान को लेकर ना चाहकर भी सड़कों पर उतर आने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। आज मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वो किसानों की दुश्वारियों को कम करके उनके आर्थिक स्वास्थ्य को जल्द से जल्द ठीक करें। सरकार को समझना होगा भारत एक कृषि प्रधान देश है और हमारा अन्नदाता किसान देश की मजबूत नींव हैं, अगर सरकार किसानों को खुशहाल जीवन जीने का माहौल प्रदान करती है तो देश भी खुशहाल रहेगा, इस वैश्विक महामारी में भी हमारे अन्नदाता दिन-रात अपने खेतों में डटे रहें, देखना आप इस गिरती हुई अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर हमारे अन्नदाता ही लाएंगे । अगर हमारा अन्नदाता इसी तरह से गरीबी, कर्ज, फसल खराब होने पर उचित मुआवजा ना मिलने व फसल के उचित मूल्य ना मिलने से परेशान होकर इसी तरह आत्महत्या करता रहा तो इस स्थिति में देश व देशवासियों का खुशहाल रहना संभव नहीं है। किसानों के हालात में अगर जल्द सुधार नहीं हुआ तो वो दिन दूर नहीं है जब बेहद कठिन परिस्थिति, कड़े परिश्रम और अनिश्चितता से भरे कृषि क्षेत्र में आने वाले समय में खेती के कार्य से लोग बहुत तेजी से पलायन करने लगेंगे। हमारे अन्नदाता किसानों के दर्द को समझने के लिए कृषि क्षेत्र से जुड़े कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो समझ आता है कि सरकार की उपेक्षा के शिकार कृषि क्षेत्र से देश की आधी से अधिक श्रमशक्ति 53 प्रतिशत लोग अपनी रोजी रोटी आजीविका चलाते हैं। इन लोगों में वो सब शामिल है जो किसी ना किसी रूप से कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। वहीं देश के आर्थिक विकास के पैमाने सकल घरेलू उत्पाद की बात करें तो देश की सरकारों के कृषि क्षेत्र के प्रति उदासीन रवैये के चलते उसमें भी कृषि क्षेत्र का योगदान बहुत कम हुआ है। यह वर्ष 1950-1951 में 54 प्रतिशत था जो अब गिरकर मात्र लगभग 15 प्रतिशत के आसपास रह गया है। वहीं विगत कुछ वर्षों में हुई किसानों की आत्महत्या पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों की बात करें तो भारत में 1995 से 2014 के बीच किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा तीन लाख पार कर चुका था। वहीं पिछले कुछ वर्षों में भारत में किसानों की आत्महत्या के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है। जो हालात देश के नीतिनिर्माताओं व भाग्यविधाताओं के साथ-साथ आमजनमानस के लिए भी बहुत चिंताजनक व सोचनीय हैं। लेकिन आजतक किसी भी सरकार ने किसानों की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार कारकों व हालतों का स्थाई समाधान करने की ठोस कारगर पहल धरातल पर नहीं किए है। इस ज्वंलत समस्या पर सरकार तत्कालिक कदम उठाकर अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री कर लेती है। आजकल तो देश के भाग्यविधाताओं ने किसानों की होने वाली आत्महत्याओं के आंकड़ों को ही छिपाना शुरू कर दिया है। दुर्भाग्य की तो बात यह हैं कि पिछले कई वर्षों से किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा आमजनमानस के लिए उपलब्ध नहीं है। लेकिन पिछले वर्षों के औसत के आधार पर कहा जा सकता है कि मौजूदा समय में देश में किसान आत्महत्याओं का यह आंकड़ा लगभग 4 लाख के आसपास पहुंच गया होगा। लेकिन फिर भी देश में किसानों की उपेक्षा लगातार जारी है ,अब देखो जैसे कंपनी वाले अपने प्रोडक्ट पर एमआरपी लिखते हैं और किसान को एमएसपी भी नहीं अब इससे कम पर बेचना अपराध में शामिल करो लिख दो इस बिल में ,आज साथियों पूरा देश अन्नदाता के साथ है ,लेकिन किसान आंदोलन की आड़ में देश विरोधी तत्वों के असली मंसूबे भी हमें जरूर समझना चाहिए। हमारा अन्नदाता ही हम सभी का पालनहार है, वास्तविकता में देखें तो अन्नदाता ही हम सभी का योद्धा है । जय किसान