किसपे किसकी नज़र है
“किसपे किसकी नज़र है?”
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विषधर विष उगले कितना ही,चंदन पर होता क्या असर है।
चाहे काँटें लाख बिछे हों,दीवानों को भाती डगर है।।
कौन चुरा पाया है ख़ुशबू,
फूलों से खोज बताओ तुम।
कौन बना पाया है कैदी,
किरणों को सोच बताओ तुम।
धूप नहीं सुखा सके सागर?ताक़त ही जीते समर है।
चलता चल मस्ती में प्यारे,तू करता क्यों जग की फिकर है।।
प्यार तुम्हारा सच्चा है तो,
जीत तुम्हारी ही कल होगी।
तम के पहरे कब तक होंगे,
देख सुबह अगले पल होगी।
गीत यहाँ अपने गाता चल,भूलो किसपे कितना असर है।
खुद चींटी खींची आएँगी,गुड़ कहीं भी दिखता अगर है।।
मानव की कीमत कम होती,
पद की गरिमा उससे ज़्यादा।
पद कर्मों का फल ही तो है,
नेक कर्म का साध इरादा।
छाया फल लकड़ी जो देता,सबको भाता वो ही शजर है।
देख सितारों से भी पहले,सबकी चंदा पर ही नज़र है।।
–आर.एस.प्रीतम
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