किरदार निखर गया होता !
अपनी सारी हदों से में भी गुजर गया होता,
सियासत में होता तो ज़मीर मर गया होता।
फिर्कों की नहीं करता इंसानियत की बात,
तेरा किरदार और भी निखर गया होता
शुक्र है होशमंदों का किरदार बाक़ी है,
वरना मुल्क का शीराजा बिखर गया होता।
मुझे भी मयस्सर न होती वतन की मिट्टी,
धमकियों से उसकी अगर डर गया होता।
सर कटाने की कीमत तुम्हें भी पता होती,
तुम्हारे घर से अगर कोई सर गया होता।
खुदगर्ज़ी छोड़ने भर की ही तो बात थी،
यह चमन अपना यकीनन संवर गया होता।
सियासी देन है मंदिर-मस्जिद का मस अला
यह बदनुमा ज़ख्म कभी का भर गया होता।
हमारी सूझबूझ से कायम हैं रौनकें सारी,
वरना घरौंदा कब का बिखर गया होता
किसी को पाने की खातिर ही तो जिंदा हूं,
यह तलब भी न होती तो मर गया होता।