किया प्यार जिससे
किया प्यार जिससे बताया न अब तक।
छुपा जो नजर में दिखाया न अब तक।
सदा दूर से हम उन्हें देखते हैं,
मगर पास उसको बुलाया न अब तक ।
कभी फूल उनके लिए जो खरीदें,
झरे हाथ में ही थमाया न अब तक।
लगे चाँद-सा रूप कितना सुहाना,
नजर भर उसे देख पाया न अब तक ।
बहुत आरजू थी हृदय से लगाये,
खुली बाँह उसमें समाया न अब तक।
इशारें उन्होंने किया था हमें जब,
कदम उस तरफ पर बढ़ाया न अब तक।
लगी आग दिल में तड़पने लगा हूँ,
मगर हाल दिल का सुनाया न अबतक।
कई बार वो सामने ही खड़े थे,
बढ़ा हाथ फिर भी मिलाया न अब तक ।
कभी प्यार पर वो करेंगे भरोसा,
उन्हें इस तरह आजमाया न अब तक।
नहीं नींद आई रहे जागते हम,
बहुत ख्वाब देखें सजाया न अब तक।
सदा रेत पर ही बनाया घरौंदा,
रहा टूटता वह मिटाया न अब तक।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली