Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Feb 2022 · 4 min read

किन्नर बेबसी कब तक ?

किन्नर बेबसी कब तक ?
********************
किन्नर जिन्हें हमारे सभ्य समाज में ट्रांसजेंडर, थर्ड जेंडर, हिजडे व किन्नर आदि नामों से भी संबोधित किया जाता है इनकी खुशी जहाँ आपके भाग्य में वृद्धि करती है वहीं इनकी नाराजगी आपको भाग्यहीन बनाने की क्षमता भी रखती है, यही नहीं इन्हें ‘मंगलमुखी भी कहा जाता है इसी लिए इन्हें शादी, जन्म, त्योहारों जैसे शुभ कार्यों व अवसरों पर आमन्त्रित किया जाता है जहाँ पर लोग अपनी हैसियत के अनुसार उन्हें धन,आभूषण, कपड़े आदि भेट देते हैं, इन्हें नाराज नहीं किया जाता इनकी नाराजगी पीड़ा का कारण बन सकती है इसलिए लोग इन्हें नाराज नहीं करते और जहाँ मान्यता हो कि किन्नरों को देने से भाग्य में वृद्धि होती हैं उनका आशीवार्द उनकी बद्‌दुआ कभी खाली नहीं जाती, तब कौन भला उन्हें नाराज करना चाहेगा लेकिन ये वास्तविकता भी अपनी जगह है कि दुःख के अवसर पर उन्हें बुलाया नहीं जाता है ।
बहरहाल इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज भी इनकी स्थिति में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं आया है ,कुछ उदाहरणों को छोड़ दें तो आज भी कह सकते हैं कि किन्नरो की स्थिति पहले की भांति ही दयनीय है, समाज की मुख्यधारा से कटे हुए ये आज भी समाज के लोगों की संवेदनहीनता शिकार बने हुए हैं कैसी विडम्बनात्मक स्थिति है कि इंसान रूप में जन्म लेकर भी एक शारीरिक दोष के कारण ये उपेक्षित जीवन ही नहीं जीते बल्कि समाज से कट भी गये हैं। इनके दर्द को समझना ,सुनना तो दूर इन्हें अपने पास खड़ा करना भी गवारा नहीं करता, रोजगार देना तो बहुत दूर की बात है इन्हें देख कर लोगों द्वारा मजाक उड़ाना हंसी बनाना उनके नज़र आते ही बच्चों का उनके पीछे भागना तालियां बचा कर आनंदित होना संवेदनशीलता की हदे पार कर देता है किसी का दिल दुखाने से बड़ा गुनाह या पाप कोई और नहीं हो सकता ये बताने की जरुरत नहीं और वैसे भी जब हम किसी की पीड़ा को कम करने का साहस नहीं रखते हैं तो हमें कोई अधिकार भी नहीं बनता कि हम किसी की पीड़ा पर किसी की कमी पर हंसी ठिठोली करके आनन्द लें।
कैसी विडम्बना है। इन अभागे किन्नरों की जहाँ प्रकृति की गलती की सजा उन्हें बे’कुसूर होकर भी भुगतना पड़ती है, कैसा दर्द है कि जहाँ उनका अपना परिवार ही उन्हें स्वीकार से इंकार कर देता है वहाँ समाज से उन्हें स्वीकार करनी की बात सोचना ही व्यर्थ है, हर तरफ से त्याग दिये जाने की पीड़ा किन्नरो की हार्दिक और मानसिक अवस्था की दयनीयता को दर्शाती है, हम सोच भी नहीं सकते कि वह अपने तिरस्कार के अपमान की इस पीड़ा को कैसे सहन कर पाते होंगे, सभ्य कहलाने वाले समाज में इनकी उपस्थिति को स्वीकारा नहीं जाता इसलिए इन्हें कोई काम देना भी पसंद नहीं करता कोई रोजगार न होने की वजह से इन्हें मजबूरी में रैड लाइटो पर भीख मांगते हुए भी देखा जा सकता है भीख में मिले पैसो से वो अपनी गुज़र- बसर करते हैं वही खूबसूरत दिखने वाले किन्नर विवशता वश वेश्यावृत्ति के व्यवसाय को भी अपनी जीविका का माध्यम बना रहे हैं।
बहुत अफसोस और आश्चर्य होता है कि आज तरक्की के इस दौर में भी हमारे सभ्य समाज में किन्नरों की उपस्थिति को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त नहीं है इसमे दोष हमारे समाज का ही नहीं है बल्कि सरकार का भी है जो अभी तक इनकी सुरक्षा और उनके अस्तित्व के लिए कोई ठोस और जमीनी स्तर पर कोई कारगर कदम नहीं उठा पाई है हालांकि 15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में किन्नरों को इज्जत से सर उठाने का अधिकार प्रदान किया उन्हें थर्ड जेंडर घोषित किया वो सब अधिकार भी दिये जो पिछड़ी जातियों को प्राप्त है लेकिन वास्तविकता के घरातल पर उनकी क्या स्थिति है यह बताने की आवश्यकता नहीं ।
सवाल यह है कि हम कौन होते है प्रकृति की नाइंसाफी की सजा देने वाले इंसान होकर दूसरे इंसान को केवल उसके शारीरिक दोष के कारण इंसान न समझना क्या उचित है ? धर्म और संस्कृति में जिनकी उपस्थिति को स्वीकारा गया है उसके उपरान्त भी उन्हें बुनियादी संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया है, यही कारण है कि किन्नरों के अपने कानून और अपने रीति-रिवाज है ये मृत्यु के उपरान्त मुर्दे को जलाते नहीं है बल्कि दफनाते हैं और किसी गैर किन्नर को मृतक का मुंह नहीं दिखाते, इसके पीछे इनकी मान्यता रहती है कि दिखाने से अगले जन्म में मृतक फिर किन्नर के रूप में जन्म लेता है । यही कारण है कि समाज के हाशिए पर खड़ा बेकसूर किन्नर समुदाय आज भी अपनी गरिमा अपने अस्तिव की कठिन लड़ाई लड़ रहा है ये जानते हुए भी समाज की मानसिकता को बदलने में अभी वक्त नहीं सदियाँ लगेंगी,और वैसे भी बिना मानसिकता के बदले किन्नरों की स्थिति में सुधार की गुंजाइश फ़िलहाल असंभव ही है।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद

Language: Hindi
Tag: लेख
8 Likes · 263 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr fauzia Naseem shad
View all
You may also like:
राम
राम
Suraj Mehra
लेकिन क्यों
लेकिन क्यों
Dinesh Kumar Gangwar
गुरु नानक देव जी --
गुरु नानक देव जी --
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गिला,रंजिशे नाराजगी, होश मैं सब रखते है ,
गिला,रंजिशे नाराजगी, होश मैं सब रखते है ,
गुप्तरत्न
उसकी हड्डियों का भंडार तो खत्म होना ही है, मगर ध्यान देना कह
उसकी हड्डियों का भंडार तो खत्म होना ही है, मगर ध्यान देना कह
Sanjay ' शून्य'
सब छोड़ कर चले गए हमें दरकिनार कर के यहां
सब छोड़ कर चले गए हमें दरकिनार कर के यहां
VINOD CHAUHAN
एक स्त्री चाहे वह किसी की सास हो सहेली हो जेठानी हो देवरानी
एक स्त्री चाहे वह किसी की सास हो सहेली हो जेठानी हो देवरानी
Pankaj Kushwaha
"" *श्रीमद्भगवद्गीता* ""
सुनीलानंद महंत
आधुनिक भारत के कारीगर
आधुनिक भारत के कारीगर
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
शिष्टाचार
शिष्टाचार
लक्ष्मी सिंह
प्यार इस कदर है तुमसे बतायें कैसें।
प्यार इस कदर है तुमसे बतायें कैसें।
Yogendra Chaturwedi
बदलाव
बदलाव
Shyam Sundar Subramanian
The thing which is there is not wanted
The thing which is there is not wanted
कवि दीपक बवेजा
जहां प्रगटे अवधपुरी श्रीराम
जहां प्रगटे अवधपुरी श्रीराम
Mohan Pandey
क्या गुजरती होगी उस दिल पर
क्या गुजरती होगी उस दिल पर
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
The flames of your love persist.
The flames of your love persist.
Manisha Manjari
"वैसा ही है"
Dr. Kishan tandon kranti
ज़रूरत के तकाज़ो पर
ज़रूरत के तकाज़ो पर
Dr fauzia Naseem shad
दिलकश
दिलकश
Vandna Thakur
■ विशेष व्यंग्य...
■ विशेष व्यंग्य...
*प्रणय प्रभात*
मजे की बात है
मजे की बात है
Rohit yadav
" दूरियां"
Pushpraj Anant
इश्क़ में जूतियों का भी रहता है डर
इश्क़ में जूतियों का भी रहता है डर
आकाश महेशपुरी
तपिश धूप की तो महज पल भर की मुश्किल है साहब
तपिश धूप की तो महज पल भर की मुश्किल है साहब
Yogini kajol Pathak
फूल फूल और फूल
फूल फूल और फूल
SATPAL CHAUHAN
मां कृपा दृष्टि कर दे
मां कृपा दृष्टि कर दे
Seema gupta,Alwar
क़ीमती लिबास(Dress) पहन कर शख़्सियत(Personality) अच्छी बनाने स
क़ीमती लिबास(Dress) पहन कर शख़्सियत(Personality) अच्छी बनाने स
Trishika S Dhara
2967.*पूर्णिका*
2967.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
संतुलित रखो जगदीश
संतुलित रखो जगदीश
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
Loading...