Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Aug 2023 · 4 min read

किताब

“बयां करने को बहुत कुछ शब्दों से बता सकता हूं लेकिन पता नहीं क्यों ,बस उसके नाम के अक्षर जहन में आ जाने से ,एक अजीब ही बेचैनी पूरे शरीर मे भर जाती है,और फिर ना चाहते हुए भी हाथों की उंगलियां कलम को इतने जोर से जकड़ लेती है, मानो पूरी स्याही कोरे कागज पर उसकी निशानियां छोड़ने को बेताब हो।
“ना जाने कितने दिन,कितनी रातें और कितने एहसाह उसके पास ना होने पर भी पास होने की उपस्थिति दर्ज करा,बिना इजाज़त दर्द का एहसास दिला देते है।”
“फिर एक शाम समय ने उसी समय में पीछे धकेल दिया जिसका डर,कई दिनों की तेज धूप और कई रातों की काली गहराई ने जेहन में बहुत अंदर बैठा दिया था।”

“उस शाम बाहर जाने का मन नहीं था लेकिन “दोस्त की जिद और जरूरत” के वजह से घर से बाहर जाना जरूरी हो गया,
‘जिद’ रही एक किताब और ‘जरूरत’ किताब के नाम की।”

हम दोनों फिर पहुंच जाते है

“विविध किताबनामा”

अपने आपमें वो किताबनामा ना जाने इतनी सारी किताबों से भरा हुआ था मानो किताबे खुद कह रही हो कि जल्दी से ले जाओ हमे और पढ़ लो वो हर एक शब्द जिसमें एक उम्मीद हो,स्वतंत्र चेतना और आजादी की।
पहला ही कदम अंदर रखने पर मानों कुछ पुराने एहसास जाग जाते है और कुछ भी ना सोचते और समझते हुए एक किताब हाथों मे इस तरह से आ जाती है मानों मेरे हाथों को उसका पता मालूम हो।
दोस्त की “जिद और जरूरत”को नजरंदाज करते हुए किताब के पन्ने पलटना शुरू कर देता हूं,इसी बीच “एक आवाज़”,जो मेरे कानों तक पहुंचती है और ना चाहते हुए भी पन्नो को विराम देकर काउंटर पर होने वाली तीखी बहस की तरफ जाने पर मजबूर कर देती है।

एक लड़की, मैनेजर से नाराजगी में कहती है – “आपको “इस”किताब का ऑर्डर कितनी बार दे चुकी हूं, लेकिन हर बार की तरह यह किताब आपके किताबनामा से गायब हो जाती है,मानो किताब में पंख लगे हो!”

थोड़ा सा शर्मिंदा होकर मैनेजर कहता है – इतनी सारी किताबों के बीच भला कैसे मैं एक किताब को अलग से रख सकता हूं। बहुत सारे पाठक और ग्राहक आते जाते रहते है,मैं खुद पूरे समय यहां नहीं रहता।अब वह किताब कहां और किसके पास है,यह मैं कैसे बता सकता हूं!

इस बार कुछ शांत स्वर में लड़की- आपको ग्राहक की चिंता भले ना हो,लेकिन कम से कम किताबों की फिक्र होनी चाहिए।

“अबकी बार मैनेजर उत्तरहीन दशा मे पहुंच जाता है।मैनेजर का चेहरा उतर जाता है और लड़की का गुस्सा ही बस समझ आ पाता है,उसका चेहरा मैनेजर की तरफ होने पर भाव भंगिमा देखने नहीं मिलती।”

इसी बीच दोस्त मुझे बालकनी में देख लेता है और पास आकर अपनी” जिद और जरूरत” का दर्द बयां करने लगता है। फिर मैं उसे ग्राउंड फ्लोर पर किताब खोजने भेज देता हूं और फर्स्ट फ्लोर पर मैं फिर से पन्ने पलटने में व्यस्त हो जाता हूं।
विविध किताबनामा में बहुत स्वतंत्रता रहती है यहां किताबों के साथ समय बिताने पर किसी को कोई खास दिक्कत नही होती इस वजह से भी दोस्त के साथ यहां आ सका।

“किताब के शुरुआती चैप्टर अपने आपमे काफी आकर्षित और बहुत कुछ सच्चाई को समेटे रहने के कारण मुझे कुछ इस तरह से बांध के रखते है मानों यह किताब मेरी ही अतीत को शब्दों से बयां कर रही हो।”

कुछ देर बाद दोस्त फर्स्ट फ्लोर पर आकर कहता है-” भाई तुझे अगर अपने दोस्त की मदद नहीं करनी है तो सीधा बोल, यहां बैठ कर किताब पढ़ने में बिजी है,दिखता नहीं पूरा १ घंटा हो चुका है और तुझे मेरी चिंता तक नही है।”
गलती मेरी थी,मेरे ही सुझाव पर उस किताब के लिए हम लोग यहां पर आए हुए थे।

“अबकी बार दोस्त की जिद और जरूरत दोनों पूरे उबाल पर रहे,इस बीच आस-पास पढ़ने और किताब को ले जाने वाले हमारी तरफ कुछ इसी तरह देख रहे थे जैसे काउंटर पर लड़की और मैनेजर को देख रहे थे।”

इतना सुनाने और देखने के बाद दोस्त थोड़ा सा खुद पर संयम रख लेता है और मुझसे कहता है-चलो भाई,अब यहां मन नही लग रहा।
मैं भी “हां” में “हां” मिलाकर नीचे काउंटर पर पहुंच कर हाथ मे ली किताब की कीमत जैसे ही पूछता हूं,तभी मैनेजर जोर से चिल्ला उठता है,मैडम आपकी किताब मिल गई ,आपकी किताब…..
पूरा का पूरा विविध किताबनामा मैनेजर की फटी आवाज से गूंज उठता है।
जैसे ही लड़की काउंटर पर पहुंचने के लिए सीढ़ी से नीचे उतरने को होती ही है इसी बीच एक नज़र हम दोनों की मिलने पर उसके पैर रुक जाते है और किताब हाथ से कब ज़मीन पर गिर जाती है,मुझे पता ही नही चलता और फिर एक अजीब सी बेचैनी पूरे शरीर मे भर जाती है और फिर ना चाहते हुए भी इस बार सामने उसके होने पर बांहे उसको बांहों में लेने को बेताब हो जाती है लेकिन उंगलियां रोक लेती है और कलम की राह देखने लगती जैसे मानो पूरी स्याही को कोरे कागज पर उतारने की आबरू हो।

“इस बीच दोस्त के शब्दों के साथ साथ विविध किताबनामे में होने वाली सारी छोटी छोटी आवाजे कानों तक पहुंचने पर भी सुनाई नही देती।

हम दोनों अपनी अपनी जगह पर दूर से एक-दूसरे को देखते बस रहते है।

तभी मैनेजर उसके पास जाता है और कहता है ये लीजिए आपकी किताब- All about love…

Language: Hindi
1 Like · 107 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Thought
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
"बहुत दिनों से"
Dr. Kishan tandon kranti
ना जाने क्यों ?
ना जाने क्यों ?
Ramswaroop Dinkar
कामयाबी
कामयाबी
DR ARUN KUMAR SHASTRI
गाँधीजी (बाल कविता)
गाँधीजी (बाल कविता)
Ravi Prakash
शेरे-पंजाब
शेरे-पंजाब
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
భరత మాతకు వందనం
భరత మాతకు వందనం
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
तुम चाहो तो मुझ से मेरी जिंदगी ले लो
तुम चाहो तो मुझ से मेरी जिंदगी ले लो
shabina. Naaz
"कोहरा रूपी कठिनाई"
Yogendra Chaturwedi
दिल की पुकार है _
दिल की पुकार है _
Rajesh vyas
🙏🙏
🙏🙏
Neelam Sharma
दिल का रोग
दिल का रोग
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
प्रश्नपत्र को पढ़ने से यदि आप को पता चल जाय कि आप को कौन से
प्रश्नपत्र को पढ़ने से यदि आप को पता चल जाय कि आप को कौन से
Sanjay ' शून्य'
जयंत (कौआ) के कथा।
जयंत (कौआ) के कथा।
Acharya Rama Nand Mandal
दोहा समीक्षा- राजीव नामदेव राना लिधौरी
दोहा समीक्षा- राजीव नामदेव राना लिधौरी
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
*┄┅════❁ 卐ॐ卐 ❁════┅┄​*
*┄┅════❁ 卐ॐ卐 ❁════┅┄​*
Satyaveer vaishnav
ला मुरारी हीरो बनने ....
ला मुरारी हीरो बनने ....
Abasaheb Sarjerao Mhaske
🌹Prodigy Love-21🌹
🌹Prodigy Love-21🌹
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
अध्यात्म का शंखनाद
अध्यात्म का शंखनाद
Dr.Pratibha Prakash
संचित सब छूटा यहाँ,
संचित सब छूटा यहाँ,
sushil sarna
" अब मिलने की कोई आस न रही "
Aarti sirsat
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
मैं तन्हाई में, ऐसा करता हूँ
मैं तन्हाई में, ऐसा करता हूँ
gurudeenverma198
World Books Day
World Books Day
Tushar Jagawat
■ सड़ा हुआ फल ताज़ा नहीं हो सकता। बिगड़ैल सुधर नहीं सकते। जब तक
■ सड़ा हुआ फल ताज़ा नहीं हो सकता। बिगड़ैल सुधर नहीं सकते। जब तक
*Author प्रणय प्रभात*
प्रेम🕊️
प्रेम🕊️
Vivek Mishra
चुनावी युद्ध
चुनावी युद्ध
Anil chobisa
जय भोलेनाथ ।
जय भोलेनाथ ।
Anil Mishra Prahari
प्रकृति और तुम
प्रकृति और तुम
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
हर तरफ़ आज दंगें लड़ाई हैं बस
हर तरफ़ आज दंगें लड़ाई हैं बस
Abhishek Shrivastava "Shivaji"
Loading...