अध्यात्म का शंखनाद
ज्ञान ज्ञान ज्ञान बोल कर मांगते सम्मान हैं
ज्ञान हैं जहां नहीं कह रहे पहचान है |
साम दाम दण्ड से, छल हेर फेर फंद से
वीर-पीर कह रहे, हम ही तो भगवान हैं |
झूठ दम्भ से भरे, यौवन के मद में पड़े
कर ऊंचे भुज बंध से पा रहे जो नाम हैं |
ऊल जुलुल कर रहे, पश्चिम को जो पढ़ रहे
राम राम बोल कर, कह रहे वो हनुमान हैं ||
जाग उठो भाग उठो, शंखनाद अब हो चुका
जान मान पहचान लो, नाद अब ये हो चुका |
सूर्य का प्रकाश है ये जागरण का काल शुभ
उन्नति और उत्थान का, तिलक हो ये भाल शुभ |
संस्कृति की संस्कार की,समय की पुकार हो
सत्य की सनातन की पुनः जय जय कार हो |
श्रेष्ठ हो, श्रेयस हो, प्रयास मार्ग प्रशस्त हो
स्त्री हो या सभ्यता, सुरक्षा अब आश्वस्त हो।।
धीरे धीरे पग बड़ा, तू किसे निहारता
सफलता का शीर्ष नित्य तुझे पुकारता |
ध्यान कर योग कर नित्य प्राणायाम कर
तू भारत वंश श्रेष्ठ जन, श्वांस को आयाम धर |
दिशा वो अब मिल रही,दिशा जो दिशाहीन थी
निशा छंट रही गहन, जो ज्ञान से विहीन थी |
हो रहा आत्म बोध, छोड़ अब तिमिर अबोध
विश्व गुरु, हम रौद्र, काली; हो रहा ये नित्य शोध ||
भू, भुव , सविता कहे, अतुल्य हमारी साधना
सकल विश्व वंदन करे, पूज्य ये आराधना |
ज्ञान के विज्ञान के,गणित कला अनुसंधान के
शिल्प चिकित्सा संगीत, श्रोत हम अभिज्ञान के |
प्रीत-मीत-गीत-रीत, न्याय सहिष्णु परम्परा
सप्त सैंधव काल जई, भरत वंश शकुंतला |
है मान-भान-अभिमान मुझे, अपने स्वर्ण इतिहास का
भारत की वसुन्धरा बनी, श्रेष्ठ अर्थ भाष परमार्थ का ||