किताब
जब तुम होती हो मेरे साथ,
कट जाता है फिर मेरा एकांत।
पढ़कर तुम्हारे हर पन्ने को,
मन हो जाता है मेरा शांत।।
खो जाता हूं तुम्हारे शब्दों में,
ऐसी लगती है अब लगन।
रोज की इस दौड़ धूप में भी,
पाकर तुम्हें ही होता हूं मगन।।
ज्ञान विज्ञान और इतिहास का,
घर बैठे कराती हो तुम दर्शन।
माँ सरस्वती के हाथों में रहती हो,
सकल जग करता है तुम्हें नमन।।