किताब-ए-इश्क़
किताब-ए-इश्क़ के हर पन्ने पर एक ही ख़ुशबू थी,
इबादत-इ-इश्क़ का कभी नूर नहीं जाता।
हवा उड़ा तो देती है सूखे हुए पत्तों को,
शज़र कभी जड़ो से दूर नहीं जाता।
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ज़िन्दगी इतनी हसीन तो नहीं,
पर तुम्हारे इन्तजार में जिए जा रहे हैं।
ज़हर कौन पीता है जानबूझ कर,
इक हम हैं जो शौक से पिए जा रहे हैं।
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हर शख़्स के अपने किस्से हैं, अपनी कहानियाँ,
यादें गमगीन दे जाती हैं, हसीन जवानियाँ,
‘दवे’ ये तन्हाई ये सूनापन हर किसी के नसीब में नहीं,
कई तूफानों के बाद आती है ये वीरानियाँ।
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