कितनों को राख कर गई भड़की हुई हवा
आज के पसमंज़र पर
———ग़ज़ल——-
कैसी लगी है आग ये कैसी चली हवा
जलती है जीस्त जिसमें ये किसने है की हवा
क्यों साँस लेना हो गया दुश्वार आजकल
शायद मिली है इसमें सियासत की भी हवा
सरहद के पार से है जो इस पार आ गई
गुज़री जिधर से शहर जला कर गयी हवा
अरसे के बाद किसने कुरेदा शरर को फिर
जो अब तलक दबी थी उसे फिर मिली हवा
हिम्मत से काम लोगे तो जीतोगे जंग को
वरना मिटा के रक्खे गी ये बाहरी हवा
दानिश्वरी इसी में है सब फ़ासले रखो
कितनों को राख़ कर गई भड़की हुई हवा
करता हूँ इल्तिज़ा मैं ख़ुदा से ये रात दिन
प्रीतम वतन में अम्न हो दे ताज़गी हवा
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)
9559926244