कितने लगे घाव क़लम से
कितने लगे घाव क़लम से देखिये
मिज़ाज हमारा हो गरम से देखिये
ये मेरे देश को कौन बेचने लगा है
नहीं उठेगी निगाह शरम से देखिये
रोजाना सियासत होती टीवी पर
गफ़लत में यहां पे भरम से देखिये
खवाबो के महल में चलते दोनों
मिलान में शब्द तुम हम से देखिये
तुम्हारे मौन पर मेरी खमोशी बड़ी
जिंदगी में होते है यूँ गम से देखिये
काश पढ़ लेते मेरी निग़ाहों में तुम
उकेरी कागज पे आँखें नम से देखिये
है अधूरे सपन गर पूरा कर दो तुम
उठाकर निगाह बस कसम से देखिये