कितने पन्ने
कितने पन्ने फाड़े मैंने,
तुझ पर गीत बनाने को।
समुचित उपमा ढूंढ न पाया,
रूप तेरा दर्शाने को।
दशन दाड़िम से प्यारे तेरे,
अधर मुधर सी लाली है।
बोली लिख दूँ कोयल जैसी,
भौहें बदरी काली है।
हिरनी जैसी चाल लिखूं क्या?
गमन तेरा बतलाने को।
कितने पन्ने फाड़े मैंने,
तुझ पर गीत बनाने को।
नयन भरे ज्यों मधु प्याले से,
चितवन तीव्र कटारी है।
भोर भानु मुस्कान शरद की,
पायल पग झनकारी है।
पवन झकोरा केश उड़ाए,
चूनर भी लहराने को।
कितने पन्ने फाड़े मैंने,
तुझ पर गीत बनाने को।
किसी शायर की ग़ज़ल कहूँ या,
तुमको कवि के छंद कहूँ।
या फिर कोई प्यासा भवँरा,
ढूंढे है मकरंद कहूँ।
दिल में रखूं तुम्हें छुपाकर,
दिखला दूँ या जमाने को।
कितने पन्ने फाड़े मैंने,
तुझ पर गीत बनाने को।