कितना खुबसूरत है बुढ़ापा
बने एक दूजे हम सहारा,
बुढ़ापा भी कट जाता है।
बने एक दूजे के हम पूरक,
सुख दुःख भी बट जाता है।।
कितना खुबसूरत है ये बुढ़ापा,
एक दूजे का रखते हम ख्याल।
सुख दुःख में एक साथ रहते,
मन में न होता कभी मलाल।।
सुबह सुबह वह चाय बनाती,
बड़े प्यार से वह मुझे पिलाती।
पीकर चाय हम मस्त हो जाते,
दिन भर वह मुझे खूब हंसाती।
रखकर भूल जाता हूं जब चश्मा,
उसको भी ढूंढ कर लाती है वो।
चलने की तैयारी करती जब मैं,
छड़ी पकड़ा देती है हाथ में वो।।
बनाती है जब रसोई में भोजन,
मै मेज पर बर्तन लगा देता हूं।
एक साथ करते हैं हम भोजन,
मेज की सफाई मै कर देता हूं।
जब कभी बीमार पड़ जाता हूं
दवा दारू करती रहती है वो।
घुटनो में जब दर्द हो जाते मेरे,
तब बेचारी मालिश करती है वो।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम