कितना कोलाहल
कितना कोलाहल है
कलरव करते पछी!
मानव बन बैठा है,
अब केवल नरभछी!!कितना कोलाहल…
अपनो का अपने ही
अब गला काट रहे !
डरते नही तनिक भी,
सत्ता शासन समकछी!!कितना कोलाहल…
नारी का मन नही देखे,
सब आखे सैक रहे है!
समबंधो की बलि चढा,
रछक भी बन गए भछी!! कितना कोलाहल…
अट्टहास करती अट्टालिकाए,
बिक गए खेत-खलिहान,
तितली-भंवरे मिट गए सब,
मिट गई सब बातै अच्छी!!कितना कोलाहल…
सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,पत्रकार
202 नीरव निकुज,सिकंदरा,आगरा-282007