कितना कुछ
कितना कुछ तुझे कहना चाहती थी मैं।
तेरी पलकों तले ,रहना चाहती थी मैं।
क्यूं बेगाने से मुझसे हुये जाते हो तुम
या किसी और के ख्यालों में हो गुम ।
तुम बेवफा निकलोगे , दिल मानता नहीं
कह देते वो भी जो ,दिल जानता नहीं।
कितने सपने ,कितने ख्वाब देखे तेरे संग
कह न पाई मैं ,मगर दिल में रही उमंग।
अनसुलझी दबी है अंदर कितनी पहेलियां
आंहे और आंसू ,बनी है मेरी सहेलियां
सुरिंदर कौर