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4 May 2017 · 1 min read

किंतु गह सद्ज्ञानरूपी लोक लो/ वही तो नवराष्ट्र का उल्लास है

रोक सकते हो मुझे, तो रोक लो
बढ़ रहा हूँ, चेतना आलोक लो
काट डालो तुम हमारे अस्त्र सब
किंतु गह सद्ज्ञानरूपी लोक लो

चेतना सद्ज्ञान में ना त्रास है
सो गए तो दीनता औ ह्रास है
बढे जो भी निज हृदय में झाँककर
वही तो नवराष्ट्र का उल्लास है
…………………………………………….

बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए”एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता

जागा हिंदुस्तान चाहिए कृति के दो मुक्तक
04-05-2017

Language: Hindi
607 Views
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