का संग खेलूँ होरी..
का संग खेलूँ होरी..
ढोल मृदंग बजे स्वर सधे गाये मंगल फाग
बसंती टेसू ने लगा दियो उर अम्बर में आग
अबीर कुम कुम केसर कंचन पिचकारी
कान्हा जल्दी आजा का संग मैं खेलूँ होरी
कान्हा देख छेड़े मुझे तेरी अल्हड़ गोपियाँ
चुन चुन कर ताना मारे ये निगोड़ी छोरियाँ
छैल छबीली नख शिख गिली चिन्ही न जाए
मोहे जलाए बोले श्याम रंग में आयी नहाए
जिस रंग तूने धरती गगन सजाई रंगोली
उस गाढ़े रंग में रंग दे मेरी चूनर चोली
जितना धोऊँ उतनो ही रंग यो चढ़तो जाए
फिर दूजो रंग चढ़े न रंग अटल प्रीत कहाए
बरसे रंग हम भीगे संग निकरे जी की हुलास
जिया बस तोहे बुलाए कोई न आइयो पास
प्रेम को ऐसो रंग चढ़ा दे कस्तूरी भए अंग अंग
बावरी मैं छम छम नाचूँ प्रीत में तेरी भई मलंग
रेखांकन।रेखा