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17 Jan 2017 · 1 min read

काहे को ब्याहे महतारी ?

सौंधी माटी की खुश्बू को यूं चाक चाक ढल जाने दो,
छोटी सी कच्ची है गगरिया, तन को तो पक जाने दो।
मधु स्मृतियों के बीच पनपते बचपन को खिल जाने दो,
काहे को ब्याहे महतारी ? मुझे, थोङा तो पढलिख जाने दो….

नादानी के खेल चढी है, बल बुद्दि की बेल नही बढी है,
मां के आंचल की ऋणी है, ममता की मूरत नही गढी है,
तिनका तिनका दाता के अंगने को, हाथों से सजाने दो।
महलों की छोटी सी चिङिया, क्यू फुदक फुदक उङ जाने दो।
काहे को ब्याहे महतारी ? मुझे, थोङा तो पढलिख जाने दो….

कच्ची पगडंडी के सपनों में, वो बरगद की छांव भली है,
इच्छाओं के पंख लगाकर अब, आसमान में उङान भरी है
मेरे दम से दम भरती प्रतिभा को, सूली पे मत चढ जाने दो
अभी अभी तो हुआ सवेरा खिलती धूप तनिक खिल जाने दो।
काहे को ब्याहे महतारी ? मुझे, थोङा तो पढलिख जाने दो…..

कन्यादान की क्या गजब विधि है,कन्या की तो जान चली है,
एक कली की दुखद कहानी, दुल्हन का आंचल ओढ चली है,
पीपल की पाती पे कुमकुम स्हायी को, क्यूं करके बह जाने दो।
चंद्रकला की मधुर चांदनी,धरा पे, थोङी थोङी तो इठलाने दो,
काहे को ब्याहे महतारी ? मुझे, थोङा तो पढलिख जाने दो……

डॉ.निशा माथुर

1 Like · 1 Comment · 1566 Views
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