काश
काश, ज़रा-सा ये हो पाता…
मैं भी बिल्कुल तेरे जैसा
दिल से पत्थर ही बन जाता..!
ज़ज्बातों का असर बेअसर
मुझ पर भी यूं ही रह जाता…!
उफ़ भी नहीं निकलता मुंह से
लाख कोई सिर को टकराता..!
सारा ज़हर दर्द का पीकर,
अमृत दुनिया में बरसाता…!
इन्सानों की हदें लांघ कर..
मैं भी महादेव बन जाता..!
काश, कभी भी ये हो पाता..!
© अभिषेक पाण्डेय अभि