काश मैं भी
काश मैं भी होता एक पंछी
उड़ता फिरता निल गगन में
हवा के संग संग बाते करता
खुश होता मैं अंतर मन में
काश मैं भी होता एक भँ-वरा
हरदम रहता फूलो के साथ
भ्रमर गुंजन मैं करता रहता
खुशबू की होती बरसात
लेकिन नहीं,,
मैं तो हूँ एक अभागा मानुष
है मुझमे भी ज़िम्मेदारी
बस उन सबको पुरा करते
बीत जायेगी ऊमर सारी
©Abhishek Kumar Dubey