“काश मैं तुम्हें कह पाता”
मैं ऐसा कुछ लिखना तो नहीं चाहता पर मैं लिख रहा हूँ। ये जानते हुए भी कि ये लेख पढ़कर सामने वाले के मन में हमारे बारे में कोई तरह – तरह के विचार पनपने वाले हैं। लेकिन मैं जब ये लिख रहा हूँ मैं उनको पूरी तरह से नजरअंदाज कर अपने आप को फैसले के स्थिति से बाहर कर चुका हूँ। इंसान जिंदगी के किसी भी मुक़ाम पर पहुँच जाए। लेकिन सच तो ये है कि उनके जिंदगी के किसी हिस्से में काश का गोशा हिलोरे ले ही रहा होता है।
ऐसी ही कहानी हमारे छोटी सी जिंदगी की है। जहां लेख लिखते हुए हमारा ज्यादा जोड़ उस काश पर है। जिनको लेकर तो कुछ मलाल है। जो कहीं ना कहीं हर इंसान के जिंदगी में होता है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि ये काश सबों के लिए अलग-अलग पहलुओं और मायनों के लिए हो सकता है। उम्मीद है कि जब आप इस लेख को पढ़ रहे होंगें तो आप मेरे बारे में शुरुआत में कोई राय नहीं बनायेंगे। लेख के अंत में ही जाकर आप फैसले पर पहुँचेंगे।
“काश मैं उसे कह पाता” जो मेरे जिंदगी के एक मलाल में रहने वाला है। लेकिन इन काश के कई पहलू भी हैं। मेरा मानना है कि एक चीज़ के कई पहलू भी हो सकते हैं। ऐसे में हमारे काश के एक पहलू ये भी हैं कि काश जो हमारे जिंदगी के साथ मलाल के रूप है वो अगर पूरा भी हो जाता तो सुनकर सामने वाली उसे किस रूप में देख रहा होती? उनकी प्रतिक्रिया क्या होती? शायद लगता है एक काश कि पूर्ति वाले वाक्य जो पूरी तरह से हमारे व्यक्तित्व छवि परिवर्तन के लिए काफ़ी हो जाता।
मैं काश को काश ही रहने देना चाहता हूँ.मैं चाहता हूँ ये हमारे जिंदगी के साथ एक मलाल के रूप में जुड़े रहे। जिन्हें हम याद कर उस काश के झरोखों के रूप में देखें जिनको जीने की तमन्ना एक तरह से दिल ने पाल रखी थी। ऐसा भी नहीं है कि हमारी तम्मना सिर्फ काश के रूप में उसे याद करने को लेकर है। लेकिन सच तो ये हैं कि यहाँ उस काश पर वो तमाम चीजें हावी हैं जो काश के कहने के बाद शायद सामने आने वाली चीजें हैं। लेकिन आप इसे एक डर और सामने वाले के सम्मान के रूप में लेकर आगे बढ़ सकते हैं।
लेकिन एक सच ये भी है कि यहाँ काश पर वो तमाम चीजें हावी है जो हो भी सकता है या उनके ठीक चीजें विपरित हो। वही दूसरे पहलू में एक सच्चाई ये भी है कि भविष्य के गर्त वाले चीजों को अपने हिसाब से सकारात्मक रूप से लिया भी नहीं जा सकता है। लेकिन मैं ये भी जान रहा हूं कि काश का ईलाज उनसे कहने में ही है। जिनके इक़रार के लिए हिम्मत की ज़रूरत है। जो हम चाहकर भी नहीं जुटा पा रहे हैं। हमें ये भी मालूम है अगर आप ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो आपको काश के सहारे ही यादों के झरोखों में जिंदगी को जीने होंगे।
इनका एक पहलू ये भी है हो सकता है मैं जो चाह रहा हूँ उनकी जिंदगी की भी अपनी भी कहानी पहले से तैयार हो। जिन कहानी की पटकथा पूरी तरह से तैयार हो। जिनमें हमारे काश के पूरे होने की गुंजाईश किसी हिसाब से बाकी नहीं रह जाती है। जिसे हम काश के पूरे होने के बाधा के रूप में भी नहीं ले सकते हैं और मेरा मानना है ऐसा होना भी नहीं चाहिए। उनको अपने रिश्ते के समायोजन के लिए पूरी तरह से ईमानदार होनी भी चाहिए।
मैं जब यहाँ काश कि बात कर रहा हूँ तो मैं ये जान भी रहा हूँ इनके पूरे होने की संभावना दूर – दूर तक नहीं है। लेकिन मैं फिर भी बोल रहा हूँ मैं उनसे प्यार के लिए आने वाले तमाम चीजों के समायोजन के लिए तैयार हूँ। हमें लगता है वो इतनी अच्छी तो है कि जिंदगी को बेहतर तरीके से जिया जा सकता है। वो इतनी अच्छी तो है कि वो चीजों को अच्छे तरह से समझ सकती है। जिनके साथ जिंदगियों में आने वाले चुनौतियों से मिलकर साथ निपटा जा सकता है।
मैं उसे जानता हूं कि वो कितनी बेहतर है चाहे वो रिश्तों के समायोजन के मामले में हो या किसी अन्य मामलों में मेरे से बेहतर ही है। हमारी काश कि पूर्ति की अभिलाषा में दिखावे के प्यार का कोई भी स्थान नहीं है। हम अपने काश के पूरी होने के अभिलाषा में उनसे लंबी बातचीत करना चाहते हैं जिसे पूरी करने के लिए उसे शायद हमारे साथ चांद के हुदुद तक साथ चलना होगा।
जैसा कि शायद कभी हो ही नहीं सकता है।
काश ये हमारे जिंदगी का मलाल नहीं होता…..
अब्दुल रकीब नोमानी
छात्र पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग मानू (हैदराबाद)