काश मुझे भी बिटिया होती
काश मुझे भी बिटिया होती
उसकी आंखो में खुद को जीती
महकी मेरी बगिया होती
मन की बाते मैं उससे करती
छन से टूटा ख्वाब मेरा ये
तन मन भी कुम्लाह गया
मेरे भीतर की बेटी का
मुझपर ही प्रहार हुआ
सिहर रही हूं सोच सोच ये
कैसे विदा मैं उसको करती
कैसे गले लगाती उसको
धड़कन कैसे उसकी गुनती
जब वो नम आंखो से हंसती
अधरो पे मुस्काहट खिलती
कुछ न कहकर सब कह देती
कैसे अनकही उसकी सहती
पल पल मिटती मिट कर जीती
खुशियां कांधे फिर भी ढोती
तुझसे मुझसे उलझे रिश्ते के
खोये सिरे बस ढूंढा करती
निरीह असहाय दूर खड़ी मैं
कैसे उसको ताका करती
इतनी टीसो से घायल हृदय को
किसकर मैं फिर सींचा करती
आज सुकूं बेटी न कोई
दर्द यहीं पा लेगा अंत
मुझमें सिमटा संग मेरे ही
खो जायेगा बन अनंत।