काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता
काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता
पृष्ठ के बीच जिसके मैंने गुलाब छिपाया होता
जो इजहारे दिल को यूँ बयां करता हर पल ही
रोज मुहब्बत का जिसने हिसाब बताया होता
वह मुझसे कुछ कहती मैं टकाटक देखता रहता
पास आकर उसने जब शबाव लुटाया होता
एकान्त क्षणों की साथी सबसे विश्वसनीय
रहबर
साथ जिसके रह दर्द मैंने अपना बंटाया होता
पढ़ रहा जिसे बचपन से अब तलक हर रोज मैं
सीख अच्छी देकर वक्त मेरा कटाया होता
प्रेयसी से कम नहीं हर फल साथ मेरा देकर
गम के धुंधों को जीवन से जिसने हटाया होता
छांव बनकर साथ मेरा दे असद से मुझे बचाती
पेज से निकाल देखूँ चेहरा प्रिया का समाया होता