‘काश न फिर अब बारिश आए’
बूँद बूँद आँगन टपका है,
घर का तम अब भय भरता है ।
झंझावातों संग आयी है,
फिर बरसात प्रलय लायी है ।
फिर कितना कुछ बह जायेगा,
मिट्टी का घर ढह जायेगा ।
शिशु नन्हा सा मन ये मेरा,
बार-बार फिर डर जायेगा ।
जीवन रीता मुस्कानों बिन,
धूम धड़ाका और गानों बिन।
भूखा जीवन सपनों के बिन,
मिट जायेगा अपनों के बिन!
किससे पूछूँ भरेगा कब तक,
बाढ़ का पानी घर की छत तक!
एक एक सब छूट गये हैं,
व्याकुल नैना बिलख रहे हैं।
काश न फिर अब बारिश आए
मेरा सहमा घर बच जाए।।
स्वरचित
रश्मि संजय श्रीवास्तव
रश्मि लहर,
लखनऊ