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10 Jul 2022 · 1 min read

काश उसने तुझे चिड़ियों जैसा पाला होता।

कुछ तो थी, उन आंखों की ख्वाहिश,
जिसे मूंद कर खत्म कर दी, उसने हर फरमाइश।
अब ना वो तुझे बार बार बुलाएगी,
घर कब आएगा, ये कह कर सताएगी।
देख दे गयी वो तुझे अब राहत सी,
और छोड़ गयी पीछे, अपनी खामोशी।
तू कह कर निकला था, पूरे करूँगा सपने तेरे,
पर खत्म ना हुए, तेरी ख्वाहिशों के फेरे।
जाने कब से वो माँ, सह रही थी तेरी कमी,
और अपने घर में, तूने बनाया उसका कमरा हीं नहीं।
क्यों हो जाते हैं स्वार्थी, बच्चे इक उम्र के बाद,
और आती नहीं उन्हें माँ के आंचल की याद।
काश उसने भी तुझे चिड़ियों जैसा पाला होता,
चलना सिखा कर, तुझे घर से निकाला होता।
पर तोड़ ना पाई, वो अपनी ममता की डोर,
और तूने पलट कर देखा हीं नहीं, उसकी ओर।
अब तुझसे हीं नहीं, सांसों से भी रिश्ता तोड़ चली वो,
कितना भी रो ले कैसे पूरी करेगा, उसकी कमी को।
कुछ दिनों में, फिर तू अपनी दुनिया में रम जाएगा,
बस हर साल, तस्वीर टांग उसकी बरसी मनाएगा।
वो भी उपर से सिर्फ आशीष हीं बरसायेगी,
जिसे जन्म दिया, वो उसे कैसे भूल पाएगी।

1 Like · 4 Comments · 285 Views
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