‘काव्य-शतक’
‘काव्य-शतक’
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फिर आज , ऐसी बेला आई;
काव्य जगत में खुशियां छाई;
उत्कृष्ट लेखन की, मची होड़;
कइयों ने दिया लिखना छोड़;
कुछ कवि,भटके व भटकाए;
कोई रोए , कुछ दुखड़ा गाए;
सही बात रही, सबको खटक;
मची थी , जोर की उठापटक;
टकटकी लगी थी,पाठकों की;
सबको,काव्य की लालसा थी;
देख रहे थे,बिन गिराए पलक;
फिर तो,कवि ने कलम उठाई;
दिखी , कविकलम की ललक;
पूरी हुई तब ही,’काव्य-शतक’;
अल्पावधि में, मिली उपलब्धि;
खुश है सारा , ‘साहित्य-जगत’;
कई मुद्दे हुए ,काव्य में उजागर;
जैसे रहता हो , गागर में सागर;
दिखे सब,रस-मय व छंद-युक्त;
और सब सजे थे, ‘अलंकार’ से;
क्षुब्ध हुए कई , काव्य-प्रहार से।
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स्वरचित सह मौलिक:
……✍️पंकज ‘कर्ण’
………….कटिहार।।