काव्य-गीत- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम(1857) के अग्रदूत क्राँत
काव्य- गीत- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम(1857) के अग्रदूत क्राँतिवीर मंगल पांडे
प्रथम क्राँतिकारी हुये, योद्धा अग्र शहीद।
मंगल पांडे दे गए, आज़ादी उम्मीद।।
पिता दिवाकर पांडे प्यारे।
माता रानी अभय दुलारे।।
जन्म-गाँव था नगवा सुंदर।
बसा ज़िला बलिया के अंदर।।
उन्नीस जुलाई दिन मनहर।
मंगल आया मंगल बन घर।।
तिथि सताइस अठावन हर्षित।
द्विज परिवार हुआ था पुलकित।।
हष्ट-पुष्ट तन से था मंगल।
खिला हुआ जैसे हो शतदल।।
बहुत बहादुर साहस अद्भुत।
देख-देख बढ़ता हरपल रुत।।
भारत के प्रथम क्रांतिकारी।
आज़ादी थी जिनको प्यारी।।
मंगल पांडेय नाम उनका।
ऋणी आज है भारत जिनका।।
शब्द शहीद इन्हीं से आया।
अग्रदूत योद्धा कहलाया।।
अंग्रेज़ों की नींव हिलाई।
अटल क्रांति ज्वाला भड़काई।।
जंगल आग-सरिस ज्वाला।
जोश होश का मानो प्याला।।
जली मसालें आज़ादी की।
अंग्रेज़ों की बरबादी की।।
क्रांति बीज बो गई शहादत।
खिली वतन से पांडे उल्फ़त।।
स्वतंत्रता का शोला भड़का।
अंग्रेज़ों का दिल था धड़का।।
अंग्रेज़ी सेना सैनिक बनकर।
पांडे चलते थे हँस तनकर।।
घटना देखी बैरकपुर में।
परिवर्तन आया तब उर में।।
एक राइफल कार्टिज़ ऊपर।
जानवरों की चर्बी सुनकर।।
पांडे बहुत क्रोध में आए।
बदले तेवर मन पर छाए।।
हिन्दू मुस्लिम होंगे आहत।
अंग्रेज़ों की थी ये चाहत।।
चर्बी सुअर गाय की डाली।
कारतूस थी ऐसी गाली।।
मेजर ह्यूमन मार गिराया।
पांडे ने यूँ सबक सिखाया।।
क्रांति-बिगुल था एक बजाया।
लेफ्टिनेंट फिर बॉब मिटाया।।
फाँसी आठ अप्रैल को, हँसकर ली स्वीकार।
साल सतावन रो दिया, खोकर पांडे प्यार।।
आर.एस. ‘प्रीतम’