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30 May 2021 · 1 min read

काव्य की दुर्गति

–” काव्य की दुर्गति “–

भावना के धरातल पर,
काव्य की तो दुर्गति हुई है।
वैभव विलास की छाया में,
रचनात्मकताएं निष्प्राण हुई है।

भावनाएँ निष्फल हुई जब,
कवि तब निःशब्द हुए हैं।
ज्ञान और विज्ञान युग में,
भावनाएँ थम सी गई है ।

लिख रहे पशु वेदना पर,
निरीह पशु के मांस खाकर।
काव्य रचना विरह गीतों पर,
मौज मस्ती में सिमटकर।

वातानुकूलित कमरे में जाकर,
बारिशों पर महाकाव्य बनता ।
वासना में सरोबोर होकर,
प्रेम रस का काव्य सजता ।

अंधेरा तो तब मिटेगा,
मन के बादल जब छंटेगे,
करेंगे पाश्चात्य दर्शन,
ख्वाहिशें फिर कम न होंगे।

सत्य से विचलित ये दुनियां,
सत्य से भयभीत क्यों है।
सत्य की भावनाओं से,
काव्य रचना दूर क्यों है।

कंपनियां भी अब ये देखो,
काव्य रचना करा रही है,
कम्पनी प्रोमो, गीत बनकर,
शीर्ष पर लहरा रही है !

काव्य की तो दुर्गति हुई है…

मौलिक एवं स्वरचित

© *मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
12 Likes · 10 Comments · 857 Views
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