काली रातों ने ओढ़ी ली खामोशी की चादर है।
काली रातों ने ओढ़ी ली खामोशी की चादर है।
और दिनो के उजालों की हमको ना ज़रूरत है।।1।।
तन्हा ही सफर अच्छा है मकसूदे मंजिल का।
किसी राहे हमसफर की दिल को ना चाहत है।।2।।
तुम्हारा यूं ऐसे नज़रों का चुराना अच्छा नहीं।
यूं खुदको दर्द ना दो गर तुमको ना मोहब्बत है।।3।।
अदबो लिहाज देखने को कहीं मिलता नहीं।
अब रिश्तों में दरम्याने दिल वह ना अकीदत है।।4।।
गाफिल इंसान खुद को खुदा समझ रहा है।
गुमराही दूर करने को अब कोई ना हिदायत है।।5।।
हमारी किस्मत में ही गम लिख दिए खुदाने।
इस दुनियां में किसी से हमको ना शिकायत है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ