काली रजनी
आज खिला कितना सुन्दर चांद,
छुप गया अंधेरा जा निज मांद।
काली रजनी बनी मन मतवाली,
पी कर मदिरा भर भर प्याली ।
है छिटपुट तारों का संगम,
है चुरकुट वारिद सा हमदम ।
मन हरने निकली आकाश गंगा,
मृदुल स्वर विखेरते कीट पतंगा ।
कोकिल संग गुंजन करते चंद्रचकोर ,
झींगुर के झन-झन से हुआ झंकृत चहुंओर ।
ठंडी-ठंडी हवा मन के भाव टटोले,
चमगादर जाने किस भाषा में बोले ।
चंचल ,चपल ,चित चांदनी,
कोमल हृदय लिए गाए राग रागिनी ।
फैल रहे ऋतु फल की मादकता,
रस घोल रहा निश्चय व्यापकता ।
तरूवर के पल्लव करते दिशा शोर ,
जुगनू स्व विजय भाव करता इंजोर।
पीपल सीसम की शीतल वातायन,
जीवन तोल रहा बन कर रासायन ।
सागर की गिरती पड़ती जल तरंग,
तट तरणि का भींगा अंग अंग ।
जब नुपूर बांध चली निशा उमंग,
शिखर पर्वत का हुआ संसितव्रत भंग ।
श्यामल धरणी के सोंधा सोंधा महक ,
उदास मन भी हरियाली संग गया चहक।
सभा लगी चंद्रमा के चहुंओर,
होगी वर्षा अभी क्या भोर ।
देख गगनचंद्र को विद् जन सारे,
प्रमाणित होंगे कल आंकलन हमारे ।
प्रकृति में छाया एक नया उन्माद ,
आज खिला कितना सुन्दर चांद ।
-उमा झा