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6 Feb 2021 · 1 min read

काला पानी

काला पानी

आज़ादी का धान करूँ तो, केवल दिखती एक कहानी !
केवल सम्मुख शोणित की, वर्षा केवल दिखता काला पानी !!

केवल वीरों की हुकार, केवल भारत की पुकार !
केवल रण में चलती थी, लोहित को दुधार !!

जिसके तन में तेज भरा वो, कभी नहीं निर्बल होगा वो !
केवल समर में चलने को, साहस का संबल होगा !!

जो नहीं कभी मृत्यु से डरकर, प्राण बचाया करता है !
पत्थर की प्रतिमा पुरूष में, प्राण फूंक कर भरता है !!

केवल माँ पर चढ़ा लाहु को, माँ का कर्ज उतारूंगा !
मरकर भी सदा जगत में कालजयी कह लाऊंगा !!

निज शोणित की धार सदा, मृत्यु के पास बहने दूँगा !
चल रहे हैं खण्ड के वारधरा पर, वो अपने पर चलने दूँगा !!

लड़ रहे हैं वीर निज धर्मभूमि पर, आज़ादी लाने को !
कोटि कंठ से एक स्वरों में गौरव गान सुनाने को !!

बलिवेदी पर चढ़ा शीश में धरती के कष्ट हरूँगा !
बून्द-बून्द अपने शोणित की न्यौछावर कर दूंगा !!

निज के लिए तो क्या जीना, में धरती के लिए जिऊँगा !
काल पुरूष के हाथों से ही काला नीर पीऊँगा !!

अमर नहीं होता नर जग में मरना उसे पड़ता हैं !
बेझिझक धर्म के लिए समर में लड़ना उसे पड़ता है !!

शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
बागोड़ा जालोर-343032
(कवि, लेखक और विश्लेषक)
मोबाइल नम्बर-8239360667

Language: Hindi
469 Views
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