#कालचक्र
#कालचक्र
◆काहे का हर्ष और कैसा विषाद….?
【प्रणय प्रभात】
“सब दिन होत न एक समाना।” महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी की यह पंक्ति जीवन में दिन-प्रतिदिन चरितार्थ होती है। बीते साल आज 22 मई (2022) को साबित हुई। जो आज की तरह आगे भी हर साल होती रहेगी।
बीते साल आज ही के दिन मेरे कैलाशवासी श्वसुर साहब की पहली बरसी का आयोजन आस्थापूर्वक संपन्न हुआ। जहाँ तक मुझे स्मरण है कैलेंडर की यही तारीख़ हमारे लिए 5 साल पहले यानि 2018 में उल्लास का संदेश लेकर आई थी। आज से ठीक पांच वर्ष पूर्व मेरे साले चि. आशीष का सम्बन्ध आयु. भारती के साथ तय हुआ था। हम सब की संयुक्त भागीदारी तब माँ चामुंडा व तुलजा भवानी की नगरी देवास में थी। जो 4 वर्ष बाद बीते साल बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में रही।
दोनों दिवसों की व्यवस्थाएं और व्यस्तताएं लगभग एक सी थीं। अंतर केवल परिवेश, प्रसंग और मनोभावों का था। पांच साल पहले के आयोजन में सब उल्लसित थे और बीते साल शोकमग्न।
यही खेल है ईश्वर-रचित नियति के विधान का। जिसे कालचक्र भी कहा जाता है। नश्वर संसार में शाश्वत संदेश यही कि जीवन के रंगमंच के परिदृश्य क्षण-प्रतिक्षण परिवर्तनीय हैं। जिन पर अति हर्ष व अति विषाद का कोई अर्थ नहीं। तटस्थता सर्वश्रेष्ठ भी है और सर्वोपरि भी। शेष अशेष। इति शिवम।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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■चार साल पहले■
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