कार्तिक पूर्णिमा
शीर्षक:कार्तिक पूर्णिमा
कार्तिक पूर्णिमा यानि गंगा स्नान
आओ चले गंगा के घाट
मिलकर करे माँ गंगा अभिनंदन
हाथ बढ़ाओ दीप जलाओ
मिलकर उसको जल में कर अर्पण
अपने-अपने फूल बहाओ मन की शांति
अपनी मन्नत मन मे रखो चलो माँ गंगा के तट पर
पूर्ण करेगी माँ गंगा जी सभी मनो के सभी विचार
मन्नतों की श्रंखला माला के मोती से पिरो के रखो
रोशनी में नहाई माँ गंगा सतरंगी सी माणिक्य समान
चमक रही है जल में झिलमिल
माँ गंगा के चरणों मे मस्तक नवाने
कार्तिक पूर्णिमा का पुण्य कमाने
आओ चले माँ गंगा के द्वारे
दिये हमारे टिमटिम चमके चलते चलते
दीपों की टेढ़ी-मेढ़ी पाँतें यूं ही बनाते
अंधेरे को रोशन करते मानो देव आये पृथ्वी पर
उत्सव मन रहा जन सैलाब अभी चले आज
माँ गंगा के द्वार खुश हो सब स्नान को तैयार
चमके दिए मानो आकाश में तारे टिमटिम
रोशन से करते है आज बहता जल मानो
जीवन गति दर्शाता सा चला
मानव को गति अवगत कर स्वयं
बहता चलता जीवन भर
चलें आज गंगा के तट पर
माँ गंगा के चरणों मे मस्तक नवाने
कार्तिक पूर्णिमा का पुण्य कमाने
आओ चले माँ गंगा के द्वारे
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद