“कारोबार”
दवाई दुकान के संचालक ने
पूछने पर हमें बताया
चिन्ता की दवाओं का आज
बहुत ज्यादा स्कोप है,
क्योंकि जमाने मे
चिन्ताओं पर कहाँ कोई रोक है?
चिन्ता तो चिन्ता है
जो कभी खत्म नहीं होती है,
आम आदमी से लेकर
बड़ी से बड़ी हस्तियाँ भी
चिन्ता के सागर में डूबी होती हैं।
मसलन रोजगार की चिन्ता
शादी की चिन्ता
फिर बच्चे की चिन्ता
चन्द महीने बाद
बच्चे के एडमिशन की चिन्ता।
यानी चिन्ता की दवाओं का
कारोबार चकाचक है,
ये दवाइयाँ बिकती भी तो
एकदम धकाधक है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
डॉ. बी.आर.अम्बेडकर नेशनल
फैलोशिप अवार्ड प्राप्त- 2019