कारवाँ दोस्ती का
कारवां दोस्ती का…
लाजमी है दुश्मन मेरे
क्यूं ना करेंगे साजिशें
रंज तो तब है सरल
जब दोस्त इसे अंजाम दे।
आज फिर दामन मेरी
दोस्ती का दागदार हुआ
आज फिर एक दोस्त मेरा
रुसवा सारे बाजार हुआ।
कब तक इस मक्कारी का
मैं बनता रहूंगा साक्षी
चाहता हूं मैं कि ये
सूरत बदलनी चाहिए।
क्यूं हैं चंद लोग अपने
झूठ की चादर लपेटे
क्यूं नहीं कुछ लोग मेरे
चाहते हैं सच को समझना।
एक एक कर मेरा कारवां
सिकुड़ता जा रहा है
झूठे अहम की खातिर अपना
एक एक दोस्त बिखरता जा रहा है।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट म प्र