कारगिल
ललकार हमें न ए जालिम
अब हमें नहीं सहना है !
खबरदार ए सरहदपार
कश्मीर हमारा अपना है !!
मत दोहरा इतिहास भूल से
इतिहास नया बनाके देख !
यारी को उत्सुक ये धरती
हाथ जरा बढ़ा के देख !!
अमन-चैन का सबक सीख ले
वरना तू पछताएगा !
कसम हमें है इस मिट्टी की
तू मिट्टी में मिल जाएगा !!
कारगिल के जर्रे-जर्रे से
यही आवाजें आती है !
दुश्मन देश संभल जा वरना
एक निशाना काफी है !!
✍️_ राजेश बन्छोर “राज”
हथखोज (भिलाई), छत्तीसगढ़, 490024