कामवासना मन की चाहत है,आत्मा तो केवल जन्म मरण के बंधनों से म
कामवासना मन की चाहत है,आत्मा तो केवल जन्म मरण के बंधनों से मुक्त होने का मार्ग ढूंढती रही ये तन तो मात्र एक साधन है उस स्थिति को ग्रहण करने का पर ये भौतिक मानव मानो तो शरीर की सारी भूख ही मिटाने में लगा है भोग विलासिता में पूरा सराबोर है।
हकीकत यही है की तुम इस सृष्टि और खुद की हकीकत से बहुत दूर हो भटक चुके हो मार्ग पतन के पथ पर ही तुम अग्रसर हो।
कभी गौतम बुद्ध को जानने की कोशिश करना।
तो कभी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को सब भोगकारक वस्तुओं का त्याग करके आशा तृष्णा से दूर होकर आत्म दीपों भव सारस्वत में लीन हो गए रह गई तो उनके द्वारा बताए गए सन्मार्ग और जीवन जीने की शैली।
RJ Anand Prajapati