कामर्स की झलकियाँ
मुझे आज भी है वो याद।
सेयर कैपिटल का वो बुनियाद ।।
हो जाता था कभी फोरफीटेड।
कभी था होता इन्वेस्टमेन्ट इन्क्लुडेड।
और तो हो जाता था एट पार।
जिसमें था होता बेड़ा पार।।
काॅल्स इन एडवांस को भूलना ।
था काॅल्स इन एरियर बन कर हमेशा झूलना।
कभी रियलाईजेशन ।
कभी रिवैल्वेशन।।
थी कभी अमालगेशन।
मुसीबत बढ़ाता था रिटाईरिंग पार्टनर ।
साथ में लाता था जब डेट पीटिशनर।।
कैपिटल इन्वेस्टमेन्ट की आती थी जब बारी।
दर्द बढ़ा देता था अकेला साझेदारी।।
एकाउन्टींग इक्वेशन ने भी कम नहीं सताया था।
जब बैलेन्स सही से न होने का जिम्मा उठाया था।।
डीपरीशियेसन ने भी खूब निभाई थी यारी ।
थी होती जो उत्तर अति सटीक हमारी।।
स्टेस्टिक्स के थे क्या कहने।
चाहता ही न था कभी मिलने।।
एक था ट्रेडिंग एकाउन्ट।
था मिलता जिसमें डिसकाउन्ट।।
थे इनकमटैक्स के अपने नखरे।
थे सैलरी पर ही छोड़ते दाग गहरे।
कम्पनी के नियम ने भी खूब चक्कर घिन्नी की तरह खूब घुमाया ।
कम्पनी काम में ही पेट्रोल दिलवाया।।