कामयाब
कामयाब की नज़र वहीं पर, लगना जहां निशाना है।
मंजिल से आधे अंगुल भर, इधर उधर ना जाना है।
पाँवों के जेहन में मंजिल , वाले रस्ते बसते हैं,
खबर न इनको मगर डगर में, किसका कहाँ ठिकाना है।
अपनी धुन में बढ़ते जाते, शौक नहीं मशहूरी का,
हैरत में उनको पाते हैं, जिनका काम जताना है।
पर्वत, नदियाँ, निर्झर, सागर, आएंगे सुंदर मंजर,
पाँव न ठिठकेंगे पल भर भी, इनको चलते जाना है।
दिल मजबूत इरादे पक्के, लहरदार जज्बात नहीं,
पहले ही तय कर रखते हैं, इस घर किसे बसाना है।
संजय नारायण