कामयाबी का नशा
कामयाबी का नशा जब ,
सिर चढ़कर बोलता है ।
आस पास उसको फिर ,
कम ही नजर आता है ।
इंसान ज़मीं पर कम और
आस्मां पर उड़ता है ।
ज़मीं का शख्स उसे फिर ,
कमतर नजर आता है ।
दिल और दिमाग में गुरुर ,
इस कदर छा जाता है ।
फिर खुदा भी उसे एक ,
वहम नजर आता है ।
यही वो हालात है जब ,
इंसान बहक जाता है ।
और ऐसे आलम में कई ,
गुनाह कर बैठता है ।
और जब खुदा देता चपत ,
होश ठिकाने आ जाता है ।
नशा फिर कामयाबी का ,
पल में उतर जाता है ।
सारा गुरुर ऐ हजूर !!
पानी पानी हो जाता है ।
सही कहा हमारे बुजुर्गो ने ,
कामयाबी जैसी नियामत को ,
कोई विरला ही संभाल पाता है ।