काबुल का दंश
कैसे अभिशप्त हो गई है
काबुल में एक माँ,
फेंकने के लिए,
अपने कलेजे के अंश को,
कँटीले बाड़े के उस पार,
गिद्धों के शाये से दूर,
मानवता के बचे होने की आश में.
कैसे अभिशप्त हो गई है
काबुल में एक माँ,
फेंकने के लिए,
अपने कलेजे के अंश को,
कँटीले बाड़े के उस पार,
गिद्धों के शाये से दूर,
मानवता के बचे होने की आश में.