काफिर कौन..?
काफिर कौन..?
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कहता हूँ मैं ये खुदा से, यहाँ सब तेरे ही बंदे हैं ,
काफिर नही कोई जग में,सब तेरे ही बाशिंदे हैं ।
फ़राख़दिल कभी भी काफिर हुआ नहीं करते,
काफिर तो बस वे ही ,जो आतंक के कारिंदे हैं।
परवरदिगार की रहमत सबपर,जो भी उनके बंदे हैं।
बसता है सबमें प्राण उनका ,चाहे जन हो या परिंदे हैं।
जीवन मिला है अनुपम,सज्दा करे हम सभी मिलकर ,
बेवजह बहाते जो लहु,खुदा के लिए वो काफिर दरिंदे हैं।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २३/०९/२०२२
आश्विन, कृष्ण पक्ष ,त्रयोदशी,शुक्रवार
विक्रम संवत २०७९
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